5 फ़रवरी 2014

५. शुभ विवाह का अवसर

शुभ विवाह का उत्सव अपना
कैद हो गया होटल में
ढोलक नहीं सुनाई देती
बाजे के कोलाहल में

घर द्वार सजाये जाते
होते थे मंगल गीत
सब जगह बुलावा जाता
आते थे अपने मीत
अब उत्सव ऐसे सिमट गया
जैसे सागर बोतल में

लुप्त हो रही अब रस्में
चमक-दमक ने घेर लिया
हल्दी उबटन केशर से
गोरी ने मुख फेर लिया
अम्मा भी अब चलीं पार्लर
चहक उठीं कौतूहल में

बाबू जी भी मान गये
अब आया नया जमाना
नयी पुरानी रस्मों में
अब तो है मेल कराना
बाबा-दादी संग–संग पहुँचे
सज-धज करके होटल में

अमित दुबे ‘वागर्थ’
इलाहाबाद

5 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर लयबद्ध नवगीत के लिए अमित जी को बहुत बहुत बधाई

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    1. आदo कल्पना दी उत्साह बढ़ाने हेतु आपका धन्यवाद

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    2. आद o कल्पना दी उत्साह बढ़ाने हेतु आपका धन्यवाद

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  2. अच्छा गीत है अमित जी का, उन्हें बहुत बहुत बधाई

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